Thursday, August 28, 2008

फिर भी जीवन जी रहा


ये हवाऐँ छेङती है,
क्यों मुझे कुछ इसतरहां
सिमटा हुआ आँचल मेरा,
मचल उठता है बादलों में।

खुल रहे केसू भी,
जो अब तक कैद थे.
इन चोटियों में,
और लटें गुदगुदाने लगीं हैं,
कोमल कपोलों को मेरे।


दुर से आती हवाऐं,
ला रही पैगाम किसका,
जिसकी खुशबू की महक,
इन वादियों में बिखरी हुई है।

मैं करुं इंतज़ार उसका,
जो तसव्वुर में ही रहा,
न स्वप्न है न ही हक़ीकत,
फिर भी जीवन जी रहा।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Tuesday, August 26, 2008

मेरे किसी ख्वाब में

ऐसा नहीं कि,
तेरी याद में,
ये आंखे रोई नहीं,
इनको सज़ा मिली है,
ये अभी तक, सोई नहीं,
ये एक वक्त से खुली हैं,
बस इस इंतज़ार में,
शायद तू नज़र आए इन्हें,
मेरे किसी ख्वाब में।
................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Friday, August 22, 2008

जो मेरा नाम लिखा करता था


वो आईना,
जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
अपने हाथों पे जो,
मेरा नाम लिखा करता था,
जाने कहां गई ,वो,
लकीरें मेरे हाथों से,
जिन लकीरों को,
वो हर शाम पढ़ा करता था।
अब शाम क्या,
सहर भी तन्हा थी,
रात की आंखों में सिर्फ,
डूबी हुई दास्तां थी,
गुम हुई है या वो,
मेरी आंखों का धोखा था,
अपनी ख्वाहिशों में क्या,
स्वप्न तस्वीरें डुबोता था,
वो आईना,
जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था।
....................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका "

Thursday, August 14, 2008

ये समन्दर बहुत गहरा है।

हमसे दोस्ती न करना,
सिर्फ आंसू ही पाओगे,
ये समन्दर बहुत गहरा है,
तुम इसमें डूब जाओगे।

इस समन्दर में कहीं भी,
साहिल नहीं मिलेगा,
सिर्फ टूटी हुई कश्ती होगी,
जिसमें मांझी को नहीं पाओगे।
हमसे दोस्ती न करना,
सिर्फ आंसू ही पाओगे।
...........
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Wednesday, August 13, 2008

तुमने, मुझे थाम लिया है।

तुम मेरे पास ही हो,
ये एहसास है मुझे,
कि अपने हाथों से,
तुमने, मुझे थाम लिया है,

जब भी डरता हूं,
तुम्हारी गोद में आ जाता हूं,
और अपनी आंखों को,
नन्हें हाथों से बंद कर लेता हूं,

मेरा रोना, तुम्हें,
बेचैन-सा कर देता है,
और एक शरारत,
मुस्कान-सी भर देता है,

मेरी तोतली बोली को,
बङे ध्यान से सुनते हो,
और बेतुके सवालों का,
तुम जवाब भी देते हो,

तुम मेरे पास ही हो,
ये एहसास है मुझे।
.............

प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Tuesday, August 12, 2008

मेरे आगोश में........

कुछ तो बात होगी,
जो, खामोश तन्हाईयां हैं,
मेरे आगोश में जाने,
ये किसकी,
बिलखती परछाईयां हैं।
जो मेरे आंसूओं को,
अपनी यादों में डुबो रही हैं,
शायद, वो भी मेरी तन्हाईयों में,
मेरे साथ रो रहीं हैं।
जिसकी सिसकियां मेरे दर्द की,
आवाज़ बन गई हैं,
जिसकी मुस्कुराहट मेरे आंसुओं का,
टूटा साज़ बन रही हैं।
जाने ये कौन-सी तन्हाईयां हैं,
मेरे आगोश में जाने,
ये किसकी,
बिलखती परछाईयां हैं।
............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Monday, August 11, 2008

सच ऐ ख्वाब...वो तुम हो...

खामोश निगाहों का सपना तुम हो,
जिसको भुला न सकूं, वो अपना तुम हो,
जिसकी हर बात, मेरी तन्हाईयों को छू ले,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो, वो तुम हो।

जिसकी धङकन की आवाज़,
सिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
जिसके आने की राह तकें,
ये आंखे बार-बार,
जिसकी खुशबू का पता,
बहारें मुझको दें जांए,
सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।

जिसका अफसाना मेरे हयात के,
पैमाने में भरा हो,
जिसको पी कर मेरा गम भी,
दीवाना बन गया हो,
मेरे माज़ी के हर पन्ने पे,
लिखी जिसकी दास्तां,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Saturday, August 9, 2008

सिर्फ इंतज़ार होगा.......

कुछ ख्वाब,
जो एक उम्मीद के सहारे थे,
वो, जो अपनी मंजिल से,
कुछ दूर, किनारे पे थे,
शायद इस इंतज़ार में थे,
कि उनको भी कोई सहारा देगा,
अपनी कश्ती से,
उनको भी किनारा देगा,
न मालूम था,
कभी न खत्म होने वाला,
ये इंतज़ार होगा,
ये इंतज़ार एक बार नहीं,
बार-बार होगा,
जब तक कि ये आंसू थम न जाए,
जब तक कि ये सांसे रुक न जाए,
सिर्फ इंतज़ार....इंतज़ार......
इंतज़ार होगा।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Thursday, August 7, 2008

यही तो हमारी नादानी थी.......


ग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
तो खुशियां कहां से आनी थी,
ख़ाबों को हक़ीकत समझ बैठे,
यही तो हमारी नादानी थी,
मिट्टी का घरौंदा था जिसमें,
ख़ाबों को हमने सजोया था,
पल-पल की खुशियों को जिसमें,
मोतियों जैसे पिरोया था,
शायद तक़दीर को उसमें,
लिखनी, और ही कहानी थी,
छोटे-छोटे उन ख्वाबों की,
बङी-सी कब्र बनानी थी,
ग़म जो लिखे थे क़िस्मत में,
तो खुशियां कहां से आनी थी।
.....................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Wednesday, August 6, 2008

काश..... "वो" भी प्रेजीडेंट होते।

हम जिस समाज में रहते हैं वहां कदम-कदम पर पॉलिटिक्स के पहलवान नजर आ जाते है। हालांकि मैं इस विषय से कोसो दूर रहती हूं और इसलिए इसके दावं पैंच से वाकिफ भी नहीं हूं। लेकिन अपनी साधारण सी जिन्दगी में इसका स्वाद हाल ही में चखा, तो लगा कि काश...मेरे ‘वो’ भी प्रेजीडेंट होते,हमारी रेजीडेंसियल सोसायटी के। पहले कभी इस इच्छा का जन्म मेरे अंदर नहीं हुआ, पर आज लगता है काश....।
अभी फिलहाल की ही बात है, हमारी सोसायटी में तीज का त्यौहार मनाया गया। इसमें ‘तीज क्वीन’ कॉन्टैस्ट रखा गया। काफी महिलाओं ने इस में भाग लिया। मैं भी उनमें शामिल हो गयी। सोचा साफ-सुथरा सीधा-साधा सा प्रोग्राम होगा, शामिल हो लेते है और साथ के लोगों ने भी काफी जोर दिया हुआ था। सो मैं भी लग गयी लाइन में। पूरा सोलह श्रंगार कर, सज-धज कर पहुंच गये। शुरूवात में ही बारिश की बौछार ने हम सभी का स्बागत किया। लगा प्रोग्राम फ्लॉप न हो जाए लेकिन कुछ समय बाद बरखा रानी थम गयी। और हम आधे भीगे-आधे सूखे से, प्रोग्राम में शामिल हो गये। कुछ लोग काफी समझदार थे वो बारिश रुकने के बाद ही पहूंचे थे। हम जैसे एक दो और बेवकूफ थे जो समय पर आकर बारिश की साजिश का शिकार हुए। वैसे पहली बार ही इस त्यौहार को इस तरह जोर शोर से किया जा रहा था। सो पूरी सोसायटी में रोमांच था कि ये शो कैसा होगा। करीब 750-800 परिवार रहते हैं हमारी सोसायटी में। सब को उम्मीद थी की जरूर से हिट होगा। इस कार्यक्रम के कई रूल बनाए गए थे। प्रोग्राम की रूप रेखा काफी अच्छी थी। आपको सोलह श्रंगार के साथ साथ गाना गाना, डांस करना, सवालों के जवाब देना, आदि कई कसौटियां थी जिस पर परख कर ही तीज क्वीन चुनी जानी थीं।
धिरे-धिरे ये प्रोग्राम आगे बढने लगा और हम सब को, जो कि तीज क्वीन में भाग लेने आये थे एक-एक नम्बर थमा दिये गये। अपने नम्बर के साथ सभी लाइन से स्टेज पर खङे हो गए। वैसे पहले ही राउंड में काफी महिलाएं बाहर होगई और कुल 10 महिलाएं ही बची रह गई, उनमें मैं भी थी। अब बारी थी डांस और गाने की। कुछ ने डांस किया, कुछ ने गाना गाया और कुछ ने कुछ भी नही किया। मैंने दोंनो में नाम लिखा रखा था तो मेरा डांस गाना दोंनो ही थे। जिसे जो आता है वो ही करना था। मगर मुझे डांस के लिए तो बोला गया पर गाने के लिए हीं बुलाया गया। मैं एक बार उन्हें बताने भी गई लेकिन फिर भी मुझे गाने के लिए नही कहा गया। पता नही क्या हो रहा था। लेकिन मैं, दोंनो ही में वहां खङे सभी 10 में सबसे अच्छी थी, ये वहां बैठे सभी लोगों ने, मुझसे मेरा डांस देखने के बाद ही कहा था। तो लगा शायद मैं तीजक्वीन के खिताब के सबसे ज्यादा नजदीक हूं । जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा था सभी की उत्सुकता बढती जा रही थी। यहां वोटिंग से तीज क्वीन चुनी जानी थी। सभी को माइक द्वारा अपना नाम और नम्बर बताना था। लेकिन एक लेडी स्टेज से उतर कर लोंगो के पास जा जा कर घूम रही थी और उसपर ओपजैक्सन करने वाला कोई भी नहीं। उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
कुछ समय बाद नतीजे आने शुरू हुए। डांस में मेरा और मेरे साथ वाली का नाम आया लेकिन गिफ्ट तो एक था सो दोंनो के नाम की चिट डाल कर निकाली गई वहां किस्मत ने साथ छोङ दिया। काफी इंतजार के बाद जिसके लिए इतना श्रंगार किए हुए थे, वो घङी आ ही गई। उसमें भी बाजी उसके हाथ आयी जिसने न तो डांस किया और न ही गाना गाया, साथ ही ये वही बहन थीं जो घूम घूम कर अपना प्रर्दशन कर रही थीं। इससे बङी खबर तो हमें बाद में पता लगी कि वो सोसायटी के प्रेजीडेंट की बहू थी जो पूरे सोलह श्रंगार में भी नही थी, जिसके लिए हमने सारा दिन लगा दिया था। और तो और हद वहां नजर आई जब साथ के लोंगो ने बताया कि उनकी ननद, भाभी का नम्बर पर्ची पर लिखवाने के लिए सभी को फ्रैंडशिप बेंड बांध रही थी। वाहजी वाह प्रेजीडेंट की बहू होने का इतना बङा फायदा कुछ न करो तब भी सब कुछ मिले।
इस ‘तीज क्वीन’ प्रोग्राम की वजह से ही मैं कुछ दिन से ब्लॉग नही लिख पा रही थी। समय मिला तो लगा अब आप सब के साथ अपने मन की बात बतलाऊं। अगर ऐसे ही किसी प्रतियोगिता को जीता जा सकता है तो काश मेरे ‘वो’ भी प्रेजीडेंट होते तो मेरा ताज भी कहीं नहीं गया होता।
प्रीती बङथ्वाल

Saturday, August 2, 2008

ये ख्वाब...मेरे......

मेरे बाद भी होंगे ये ख्वाब,
जो मेरी आंखों में, हैं अभी,
बहेंगे उस तरह ही,
मन के सागर में,
बहते हैं, जैसे अभी,

ओंस की बूंदों की आंखों से,
नमी को चुराकर,
सांस लेगे, वो फिरसे,
इस ज़मी और इन वादियों में,

हर जगह रहेंगे ये ख्वाब,
जो दिखेंगे नहीं,
मगर महसूस होंगे उसे,
जो चाहेगा इन्हें,मेरी ही तरह,
ये ख्वाब......, मेरे बाद भी होंगे.....

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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"