Sunday, September 28, 2008

टूटे फूलों से भी महक पाओगे


दर्द में भी जो हंसना चाहो,
तो हंस पाओगे,
टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
तो उनमें भी महक पाओगे।

जिन्दगी किसी ठहराव में,
कंही रुकती नहीं,
हिम्मत जो करोगे तो
मन्जिल में दोस्तों को पाओगे,
टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
तो उनमें भी महक पाओगे।


अरमान कभी पूरे नहीं होते,
जो देखे जाते हैं,
वो भी आंसुओं के साथ,
आंखों से निकल जाते हैं,
फिर भी, किसी की खातिर,
खुद को सवांरोगे तो,
सराहे जाओगे,
टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
तो उनमें भी महक पाओगे।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका "
(चित्र-सभार गुगल)

Thursday, September 25, 2008

अजनबी ही रहने दो

अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे,
खुद लहू हो जाएंगे,
जो अब, हम इसे सवारें,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।

बिखरे हुए ख्वाबों की,
एक किताब लिख रही थी,
ज़मी से लेकर उन रास्तों की,
हर बात लिख रही थी,
उनमें कुछ लम्हों को हमने,
आंसुओं में भी उतारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।

दिल जानता था वो लम्हा,
मेरे आस-पास ही कहीं था,
वो, न दूर होगा मुझसे,
इस बात का यंकी था,
पर फिर भी उसके एहसास को हमने,
अन्धेरों में गुजारे,
अजनबी ही रहने दो,
अब ये रास्ते हमारे।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र-सभार गुगल)

Monday, September 22, 2008

जब भी बुलाओगे मुझे

मैं एक आंसू हूं,
ठहर नहीं पाऊंगी,
जब भी बुलाओगे मुझे,
मैं पास आ जाऊंगी।

दर्द की तन्हाइयों में हमेशा,
रास्ते पे नजर आऊंगी,
मैं एक आंसू हूं,
ठहर नहीं पाऊंगी।

अपनी खुशियों में,
न शामिल कर सकोगे मुझे,
लेकिन गमों में,
मैं साथ निभाऊंगी,
मैं एक आंसू हूं,
ठहर नहीं पाऊंगी,
जब भी बुलाओगे मुझे,
मै पास आ जाऊंगी।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- सभार गुगल)

Tuesday, September 16, 2008

फिर मुझे ख्वाब आया है...



मेरे ख्वाब ने ही,
मुझको रुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था,
मुस्कुराते उसके कदम,
मुझसे ही पनाह मांगते थे,
मुझको रुलाकर गये थे,
तभी तो हंसना जानते थे,
बन्द पलकों के तले,
आज उनकों, फिर सुलाया था,
आज, एक सफ़र के बाद,
फिर मुझे ख्वाब आया था।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(फोटो-सभार गुगल )

Sunday, September 14, 2008

मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं

इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना,
मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं,
मुझे आंसुओं के सागर में,
मत डुबाना।

मुझपे जो लिखी थी,
कभी कहानी तुम ने,
तुमसे गुज़ारिश है,
उसे फिर न दोहराना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।

खा़मोश पलकें थी,
दर्द की तन्हाईयों में,
कोई ख्वाब टूटा था शायद,
इन आईनों में,
ख्वाब में आके जरा तुम,
तन्हाईयों को सहलाना,
इतना मत रुलाओ कि,
मुश्किल हो हंस पाना।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(फोटो-सभार गुगल )

Friday, September 12, 2008

मुझे इंतज़ार है फिर भी

चिराग़ जल के मेरा,
बुझ जाएगा,
मुझे इन्तज़ार है फिर भी,
कि तू आएगा,
खुली आंखों में न सही,
बन्द पलकों के तले,
वो एक आंसू की बूंद-सा,
ठहर जाएगा,
मुझे इन्तज़ार है फिर भी,
कि तू आएगा।
न इस तरहा से मुझे,
भूल जाने की कौशिश कर,
मैं तेरा ही ख्वाब हूं,
तू मुझे भूल नही पाएगा,
मुझे इन्तज़ार है फिर भी,
कि तू आएगा।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- सभार गुगल )

Friday, September 5, 2008

ये आईने भी........



जब सबने बेवफाई की, तो
आईने से दोस्ती कर ली,
मगर ये आईने भी,
दुश्मनी निभाते हैं,
जिन ख्वाबों से,
मैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
पल-भर भी जो,
न ठहर सकें,
वो आशियां बनाते हैं,
फिर टूट कर,
बिखर जाते,
जो ख्वाब हम सजातें हैं।

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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Wednesday, September 3, 2008

तेरे हाथ में जब मेरा हाथ हो

तेरे हाथ में मेरा हाथ हो
तब दोनों जहां का साथ हो
जीवन का एहसास हो
फिर से जीने का अभ्यास हो
छोटे जीवन की बात नहीं,
सदियों जीने की बात हो
छोटे छोटे इन हाथों की
छोटी-सी खुशियों का एहसास हो
अपने सपनों को पाने का
इन आखों में विश्वास हो
मैं खुद को तुझमें ढूंढ रहा
मुझे फिर बचपन की आस हो
तुझे खिलखिलाता देखकर
मुझको हंसने की चाह हो
तेरे हाथ में, जब मेरा हाथ हो।
................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Tuesday, September 2, 2008

क्या तुमने देखा है, मां-बाबा को



आंखे खोज रही हैं उस मां को
जो बह निकली जलधारा संग
और पिता का भी कुछ अता नहीं
कहां है वो उसको पता नहीं
दिल में एक ही आस लिए
आखों में पाने की प्यास लिए
लिए ढूंढ रहा भाई को संग
इधर-उधर बदहवास लिए
छोटे कन्धों पर है छोटे का भार
अभी हुआ नही मैं दस बर्ष का भी
पूछ रहा हर एक से वो........
क्या किसी ने देखा है, मां-बाबा को
आंखों से बहती जल की धारा है
और होंठ सूख रहे हैं...
प्रकृति का प्रकोप ये देखो
मां-बाप से नन्हें बिछङ रहें हैं।
................

प्रीती बङथ्वाल "तारिका "

"यह कविता सच्ची घटना पर है। बिहार में स्टेशन पर एक बच्चा, जिसकी मां पानी में बह गई और पिता का कुछ पता नही चल रहा है। वो अपने छोटे भाई के साथ स्टेशन पर बने राहत शिविर में रह रहा है। यहां पर खाने के लिए जो खिचङी मिल रही है उससे अपना और अपने छोटे भाई का पेट भर रहा। वहीं स्टेशन से मिली जानकारी से ये पुष्टि हो गई है कि उसकी मां का देहांत हो चुका है, लेकिन पिता के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला है। वो स्टेशन पर सभी से यही पूछता रहता है कि उसके मां-बाबा कहां हैं? किसी ने उन्हें देखा है क्या? "

चित्र के लिए नितीश राज जी का आभार ये मेने उन्हीं के ब्लॉग से लिया है।

Monday, September 1, 2008

तेरी याद के आंसू रह गये


तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये,
फूलों के मंका बनाये थे,
जो रेत के घरौंदों में ढह गये।
तू मुसाफिर नहीं था,
मेरी मन्जिल का,
जो इस तरहा से चला गया,
मेरी हर हंसी का तू ख्वाब था,
जो बिखर-बिखर के रह गये।
अभी दूर तक ही न गया था तू,
तेरे पांव रुक कर ठहर गये,
मेरे ख्वाब ने एक आस की,
होंठ मुस्कुराते रह गये।

तू रुका था एक पल के लिए,
फिर धुंध में कंही खो गया,
मेरी आंख में आंसू अभी-अभी,
मुस्कुरा कर बह गये।
तू न रहा मेरे संग मगर,
तेरी याद के आंसू रह गये।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"