Thursday, July 31, 2008

आंसू,गम,और मैं..........



वो देखो, फिर चल पङी खुशियां,
दामन को मेरे झाङ कर,
आंसुओं के सागर में,
ख़ाबों की कश्ती डाल कर,
वो देखो, चल पङी खुशियां,
दामन को मेरे झाङ कर।
फिर वही ग़म,
जो पहले भी मेरे साथ था,
पहले से भी ज्यादा जिसमें,
दर्द का आभास था,
वो पलकें जो आंसुओं को,
कब से थामे हुई थी,
आज फिर उनमें,
नमी का एहसास था,
अब वही मैं थी, वही आंसू,
वही ग़मों ने घेरा था,
आज मेरे पास सिर्फ यादें थी,
और यादों का बसेरा था।
सिर्फ यादों का बसेरा था ।।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Tuesday, July 29, 2008

ये म्यारा पहाङ है.........



ये म्यारा पहाङ है,
ये म्यारा पहाङ...
हरी-हरी वसुन्धरा पे,
खिल रहें जो फूल से,
हवा भी बह रही है, जहां
छू के, बर्फ को सकून से,
अमृत सी हर बूंद जंहा,
कर रही श्रंगार है....,
ये म्यारा पहाङ है,
ये म्यारा पहाङ...

ये ऊंचे-ऊंचे वृक्ष यहां,
अपने में इसकी शान है,
यहां फल और फूल ही क्या,
यहां जङी-बटियों की खान हैं,
ये म्यारा पहाङ है,
ये म्यारा पहाङ...
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

Monday, July 28, 2008

बस मां के पास...........


वो डबडबाती आंखे,
वो बिलखती आंखे,
खून से सनी वो,
हैं किस बच्चे की सांसे।

जो पुकारता किसी अपने को,
जो ढूढंता किसी अपने को,
जिसे देख कर कोई भी,
जान न पाये उसे,और उसके अपने को।

मां...आ...मां...आ...का रूदन करता वो,
बिना सांस लिए दोहराये,
वो प्रश्न लिए आंखों में,
सब ओर यूं तकता जाये,

शायद, कोई अपना देख रहा हो,
जो पास उसके आ जाये,
और गोदी में उसे उठा कर,
बस, मां के पास ले जाये।
बस, मां के पास.............
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"