जब कहते हैं, आजाद हैं हम,
तो नारी को, क्यों दिया बंधन,
लम्बें परदें की ओटों में,
क्यों बांध रहे उसको बंधन?
क्या सोचा है,..कभी तुमने,
कैसे जीवन को जीती वो?..
रस्मों की ओट में डाले हुए,
सारे बंधन को सहती वो?..
कहते हैं हया का परदा है,
क्या परदा नही, तो हया भी नहीं?..
बस एक घूंघट के घूंटों में,
क्यों तिल-तिल मार रहे उसको।
तो नारी को, क्यों दिया बंधन,
लम्बें परदें की ओटों में,
क्यों बांध रहे उसको बंधन?
क्या सोचा है,..कभी तुमने,
कैसे जीवन को जीती वो?..
रस्मों की ओट में डाले हुए,
सारे बंधन को सहती वो?..
कहते हैं हया का परदा है,
क्या परदा नही, तो हया भी नहीं?..
बस एक घूंघट के घूंटों में,
क्यों तिल-तिल मार रहे उसको।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)