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Monday, June 29, 2009

दबे पांव आने दो बदरा...........





हे सूरज महाराज......
गर्मी को बरसाओ ना यूं ,
पत्थर सा सिकवाओ ना यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।


ना मुसकाते रहो यूं अकेले,
खङी धूप में, बिन सहेले,
तुमको होगी कसम चांदनी की,
दिन में तारे, दिखलाओ ना यूं ,
दबे पाव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।



तुमभी अगन में तपे हो,
कई बरसों के प्यासे रहे हो,
थोङा रुकलो, तो आराम कर लो,
तुमभी खुद को सुखाया करो यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।
...............
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)