Sunday, June 13, 2010

महकते रंग गुल में........






महकते रंग गुल में,
गुलज़ार होते हैं,
मचलते ख़्वाब,
स्वप्न के पार होते हैं,



ना जाने क्यों,
मोहब्बत इम्तहां लेती,
जो भी डूबते इसमें,
वही कुर्बान होते हैं,



बङी खूबी से गिरते हैं,
ये पतझङ के जो पत्ते हैं,
नाम पत्ता रखा इनका,
रंग खो कर भी सवरते हैं,



जाम कोई भी हो साक़ी,
नशा वो दे ही देती है,
और ये इश्क का जलवा,
दवा भी जाम जैसी है,
........... 
प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र साभार गूगल)

18 comments:

  1. pahali baar blog par aaya ,,,,aapki ye rachna bahut achhi lagi ...samay milane par pichhali bhi padhunga...bahut-bahut shubhkaamnaye

    ReplyDelete
  2. आपकी रचनाये अत्यंत ही भावुक होती है ...

    शुक्रिया इतनी खुबसूरत रचनाये उपलब्ध कराने के लिए...

    ReplyDelete
  3. आपकी रचना उम्दा है।
    इस तरह लिखती रहे यही शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  4. काफी दिनों बाद बेहतरीन रचना पढ़ने मिली...आभार

    ReplyDelete
  5. जाम कोई भी हो साक़ी,
    नशा वो दे ही देती है,
    और ये इश्क का जलवा,
    दवा भी जाम जैसी है....
    क्या बात है ...!!

    ReplyDelete
  6. बहुत बढ़िया रचना..पूरे तीन महिने बाद नजर आईं..सब ठीक ठाक तो है.

    ReplyDelete
  7. आपकी रचनाये अत्यंत ही भावुक होती है ...

    ReplyDelete
  8. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

    ReplyDelete
  9. ना जाने क्यों,
    मोहब्बत इम्तहां लेती,
    जो भी डूबते इसमें,
    वही कुर्बान होते हैं,
    orsam...
    keep it up..

    ReplyDelete
  10. महकते रंग गुल में,
    गुलज़ार होते हैं,
    मचलते ख़्वाब,
    स्वप्न के पार होते हैं,

    हैलो प्रीति जी

    सुंदर रचना है काफी समय बाद आई
    बढ़िया समन्वय है भाषा का, एक ही कविता मे हिन्दी और उर्दू के
    शब्दो का अच्छा प्रयोग करती है आप

    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  11. "इतनी कृपा करी है प्रभु ने , किसको किसको याद करूं मैं
    करुणा सागर उनसा पाया अब किससे फ़रियाद करूं मैं

    अब केवल है यही याचना शक्तिबुद्धि मुझको दो दाता
    कह पाऊँ मैं सारे जग से तेरी कृपा दान की गाथा

    ReplyDelete
  12. बहुत ही खूबसूरत रचना है...
    ...पढ़ कर आनंद आया...

    ReplyDelete
  13. हृदयस्पर्शी रचना .... पहली बार आपकी पोस्ट पर आया.. पिछली पड़ना शेष है..

    ReplyDelete

मेरी रचना पर आपकी राय