Monday, May 7, 2012
Friday, August 12, 2011
तुम ना आना.........
तुम क्यों नहीं आए.....
जब ख़ामोश नज़रों ने,
पुकारा था तुम्हें,
जब सिसक रहे थे ख्वाब,
और सिमट रही थी खुशियां,
तुम क्यों नहीं आए........,
तुम क्यों नहीं आए....
जब रास्ते पर,
टक-टकी लगाई आंखे,
ढूंढ रही थी,
तेरे कदमों की आहट को,
तुम क्यों नहीं आए......
अब के जब,
पत्थराई आंखे....,
पत्थर बन गई,
और सांसों की डोर,
हाथों से छूट गई,
तुम ना आना...,हां..
तुम ना आना...,
बस यूंही
अफसोस जताने को।
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प्रीती बङथ्वाल(तारिका)
(फोटो-गूगल)
Thursday, July 15, 2010
ऐ साथी मेरे सुन................
ऐ साथी मेरे,
सुन मेरी बात को,
साथ रहना सदा,
चाहे, कोई बात हो,
सुख का सूरज हो या,
हो दुख की काली घटा,
राह में पत्थर भी हों,
चाहे हों फुलवारियां......,
ऐ साथी मेरे,
सुन मेरी बात को।।
वो वादे तुम्हारे,
न हम भूल पाए,
तभी तो ये पलकें,
कभी मुस्कुराएं,
कभी भीग जाएं।
वो टुक टुक नजर से,
नजर को मिलाएं,
ऐ साथी मेरे,
सुन मेरी बात को।।
पहरे हजारों थे,
सभी तोङ आए,
बस.....तेरे लिए,
वो गली छोङ आए,
जहां अम्मा बाबू जी,
नित खेल खिलाते थे,
उंगली पकङ कर वो,
चलना सिखाते थे,
वो सभी छोङ आए,
सभी छोङ आए,
ऐ साथी मेरे,
सुन मेरी बात को।।
...........
प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
(चित्र – साभार गूगल)
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