निशा की चांदनी में,
वो दमकती-सी रोशनी,
रात की रानी से,
वो महकती-सी रोशनी,
कब मेरे दामन में,
उसकी, आहट-सी हुई,
जिसने मेरी रोशनी में भरी,
अपनी-सी रोशनी।।
तिनका-तिनका कर, बटोरती,
बरसों से चली थी,
आज जाकर, मेरे गुलिस्तां में खिली,
एक कली थी,
मेहमा है मेरे दिल में,
उसके आने की हर खुशी,
रात की रानी से,
वो महकती-सी रोशनी।।
वो दमकती-सी रोशनी,
रात की रानी से,
वो महकती-सी रोशनी,
कब मेरे दामन में,
उसकी, आहट-सी हुई,
जिसने मेरी रोशनी में भरी,
अपनी-सी रोशनी।।
तिनका-तिनका कर, बटोरती,
बरसों से चली थी,
आज जाकर, मेरे गुलिस्तां में खिली,
एक कली थी,
मेहमा है मेरे दिल में,
उसके आने की हर खुशी,
रात की रानी से,
वो महकती-सी रोशनी।।
शबनम के हर इशारे को,
समझ रही थी वो,
चंचल थी नज़र फिर भी,
एकटक खङी थी वो,
पूछती थी, कब से (मेरी) तकदीर की हुई,
खुशियों से दोस्ती,
रात की रानी से,
वो महकती-सी रोशनी।।
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प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र- साभार गूगल)